शिव पार्वती संवाद
इस अध्याय में शिव और पार्वती जी के बीच श्रीराम के स्वरूप, लीला और नाम की महिमा को लेकर सुंदर संवाद होता है। यह संवाद श्रद्धा, भक्ति और ज्ञान की गहराई से भरपूर है।
श्लोक 1
संस्कृत:
बोली पारबती सुनु नाथा। कृपा करहु मो पर रघुनाथा॥
भावार्थ:
पार्वती जी शिवजी से रामकथा सुनने की प्रार्थना करती हैं।
श्लोक 2
संस्कृत:
कहहु नाथ रघुनाथ कृपाला। जेहि बिधि भजेउ मुनिन्ह करि लाला॥
भावार्थ:
वह पूछती हैं कि मुनियों ने किस प्रकार से श्रीराम का भजन किया।
श्लोक 3
संस्कृत:
तब महेसु बोले मुसुकाई। सुनु भवानी सत्य उपाई॥
भावार्थ:
शिवजी पार्वती को राम भक्ति का मार्ग समझाने लगते हैं।
श्लोक 4
संस्कृत:
राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतरि बाहेरहु जिआउ उजास अपार॥
भावार्थ:
शिवजी कहते हैं कि राम नाम ही अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने वाला दीपक है।
श्लोक 5
संस्कृत:
कहहिं सत्य शिव राम सनेही। जान लेउ जो जाननु गेही॥
भावार्थ:
राम को जानने के लिए सच्ची भक्ति और प्रेम आवश्यक है।
श्लोक 6
संस्कृत:
जेहि भाँति करुनामय राम। भजत सुर मुनि नारि अरु ग्राम॥
भावार्थ:
राम को हर वर्ग के लोग—चाहे वे देव हों, मुनि हों, स्त्रियाँ या साधारण जन—भक्ति भाव से पूजते हैं।