लोगोलोक में राम

राम-लक्ष्मण का विश्वामित्र संग जाना

इस अध्याय में ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को यज्ञ रक्षा के लिए माँगते हैं। राजा दशरथ पहले संकोच करते हैं, पर वशिष्ठ के समझाने पर सहमत होते हैं। राम-लक्ष्मण गुरु की आज्ञा मानकर विश्वामित्र के साथ वन की ओर प्रस्थान करते हैं। यह अध्याय उनकी आज्ञाकारिता, साहस और धर्मपालन को दर्शाता है।

श्लोक 1

संस्कृत:

मागे मुनि रघुनायक दोऊ। बचन सुनी भूप मनु सोऊ॥

भावार्थ:

विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को मांगते हैं, राजा दशरथ चिंता में पड़ जाते हैं।

श्लोक 2

संस्कृत:

कहत दीन भूपति मन माहीं। बालक द्वय जन तें कहुँ नाहीं॥

भावार्थ:

राजा दशरथ पुत्रों की आयु देखकर चिंतित होते हैं।

श्लोक 3

संस्कृत:

तब वशिष्ठ कहे बचन बिस्वासा। राम लखन करहु नृप आसा॥

भावार्थ:

गुरु वशिष्ठ राजा को समझाते हैं कि राम सक्षम हैं।

श्लोक 4

संस्कृत:

सुनि गुर बचन राजु मन माना। मुनि पद पखारि बिदा करि आना॥

भावार्थ:

राजा दशरथ ने गुरु वशिष्ठ के कहने पर राम और लक्ष्मण को भेजने का निर्णय लिया।

श्लोक 5

संस्कृत:

राम लखन रघुपति सुत भाई। चले संग मुनि हरषि सुभाई॥

भावार्थ:

राम और लक्ष्मण आज्ञा लेकर उत्साहपूर्वक चल देते हैं।

श्लोक 6

संस्कृत:

मुनि चले आगे रघुबर पाछे। तन मन मुदित पाँव नहिं काँछे॥

भावार्थ:

यात्रा में राम-लक्ष्मण पूरे उत्साह और निष्ठा से आगे बढ़ते हैं।

श्लोक 7

संस्कृत:

बोलत मनोहर कथा मुनि गावहिं। राम लखन चित्त सुधा सम पावहिं॥

भावार्थ:

यात्रा में मुनि विश्वामित्र ज्ञानवर्धक कथाएँ सुनाते हैं।

श्लोक 8

संस्कृत:

गए मार्ग वन चरन सुहावा। जहाँ निसाचर करहिं दुख दावा॥

भावार्थ:

राम-लक्ष्मण अब उस क्षेत्र की ओर बढ़ते हैं जहाँ राक्षस उत्पात मचाते हैं।

श्लोक 9

संस्कृत:

देखत बालक छबि मन मोहिनी। मुनि चित आनंदित अति लोचनी॥

भावार्थ:

विश्वामित्र राम-लक्ष्मण की तेजस्विता और सरलता से अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

श्लोक 10

संस्कृत:

आगे बढ़े जहाँ ताड़का बासा। मुनि बोले सुनहु नृप नंदन प्यासा॥

भावार्थ:

विश्वामित्र अब ताड़का की कथा और खतरे के बारे में राम को बताते हैं।