विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा
इस अध्याय में श्रीराम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ यज्ञ की रक्षा के लिए वन जाते हैं। वहाँ वे ताड़का और अन्य राक्षसों का वध करते हैं तथा यज्ञ को निर्विघ्न संपन्न कराते हैं। यह अध्याय राम के पराक्रम और धर्मरक्षा की भावना को उजागर करता है।
श्लोक 1
संस्कृत:
संग लइ दोउ बालक रघुबर। चले मुनि संग अति मनु हरषर॥
भावार्थ:
राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ यज्ञ रक्षा के लिए वन की ओर प्रस्थान करते हैं।
श्लोक 2
संस्कृत:
ताड़का नाम राक्षसी भारी। बिस्वामित्र कहे हितकारी॥
भावार्थ:
विश्वामित्र श्रीराम को ताड़का के अत्याचारों के बारे में बताते हैं।
श्लोक 3
संस्कृत:
राम चढ़े धनुष बिसाला। करि घोर गर्जन करि बाला॥
भावार्थ:
राम ने युद्ध का उद्घोष करते हुए राक्षसी से मुकाबले की तैयारी की।
श्लोक 4
संस्कृत:
ताड़का आयसु मुनि दीन्हा। राम बाण संधानु कीन्हा॥
भावार्थ:
विश्वामित्र की अनुमति से राम ने ताड़का पर बाण चलाया।
श्लोक 5
संस्कृत:
मृत्यु भई ताड़का घोरी। सुर मुनि देहिं असीस न थोरी॥
भावार्थ:
राम के हाथों ताड़का का वध होता है और सभी प्रसन्न होते हैं।
श्लोक 6
संस्कृत:
राखे यज्ञ सकल अघ हारी। राम बिप्र हित करनी भारी॥
भावार्थ:
राम ने धर्म की स्थापना करते हुए यज्ञ को सफल बनाया।
श्लोक 7
संस्कृत:
लखन सखा संग सहाय। करत यज्ञ मुनि सुख पाय॥
भावार्थ:
राम और लक्ष्मण के साथ से ऋषि विश्वामित्र को यज्ञ में पूर्ण आनंद प्राप्त होता है।
श्लोक 8
संस्कृत:
मुनि बोले सुनहु रघुनंदन। चलिअ जनकपुर सुंदर बंधन॥
भावार्थ:
यज्ञ की सफलता के बाद विश्वामित्र श्रीराम को जनकपुर चलने का निमंत्रण देते हैं।