लोगोलोक में राम

अहल्या उद्धार

इस अध्याय में श्रीराम महर्षि गौतम की पत्नी अहल्या का उद्धार करते हैं, जिन्हें श्रापवश अदृश्य रूप में तपस्यारत रहना पड़ा था। श्रीराम के चरण स्पर्श से अहल्या को पुनः देहधारण होता है और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। यह प्रसंग श्रीराम की करुणा और उनके चरणों की महिमा को प्रकट करता है।

श्लोक 1

संस्कृत:

सुनि मुनि वाक्य चले दोउ भ्राता। चरन चलित पथ देखत भ्राता॥

भावार्थ:

श्रीराम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के निर्देशानुसार अहल्या आश्रम की ओर बढ़ते हैं।

श्लोक 2

संस्कृत:

निज प्रभाउ जानि रघुराई। चले मुनिबर संग सहाई॥

भावार्थ:

श्रीराम जानते हैं कि उनका आगमन अहल्या के उद्धार हेतु नियत है।

श्लोक 3

संस्कृत:

अदृश अहिल्या तप बल भारी। देखे रामु सहज हितकारी॥

भावार्थ:

श्रीराम अपनी करुणा से अहल्या की पीड़ा को पहचानते हैं।

श्लोक 4

संस्कृत:

चरण रजु ज्यों लाग अहिलाई। प्रकट भई तनु ब्रह्म सुताई॥

भावार्थ:

श्रीराम के चरण-स्पर्श मात्र से अहल्या को मुक्ति प्राप्त होती है।

श्लोक 5

संस्कृत:

हरष सहित प्रभुहि सिर नावा। पुलक तनु मन बिस्मय छावा॥

भावार्थ:

श्रीराम के दर्शन से अहल्या की चेतना प्रेम और श्रद्धा से भर उठती है।

श्लोक 6

संस्कृत:

मुनि आयसु दीन्हि तब भाई। पुनि गयउ गगन बोलि बड़ाई॥

भावार्थ:

विश्वामित्र और दिव्य आकाशवाणी दोनों श्रीराम के कार्य की सराहना करते हैं।

श्लोक 7

संस्कृत:

गौतम प्रगट भये तिहु काला। देखत राम रूप सुख साला॥

भावार्थ:

गौतम ऋषि श्रीराम को देखकर स्वयं धन्य हो जाते हैं।

श्लोक 8

संस्कृत:

कीन्हि पूजा सहित प्रेम भारी। पाय पखारि कहे शुभ बारी॥

भावार्थ:

श्रीराम को साक्षात भगवान मानकर ऋषि गौतम पूजा करते हैं।