ब्राह्मण संत वन्दना
इस अध्याय में तुलसीदास जी ने ब्राह्मणों और संतों की महिमा का वर्णन करते हुए उनकी वन्दना की है, जो धर्म की रक्षा करते हैं।
श्लोक 1
संस्कृत:
ब्राह्मणधर्म परायणं सन्तं तु स्तुवन्ति यथा सुराः। तेषां वन्दनं करोन्नस्मि सद्भिः सदैव सहस्रशः॥
भावार्थ:
यह श्लोक ब्राह्मणों और संतों के धर्मपरायण होने की महिमा करता है और उनकी वन्दना का महत्व बताता है।
श्लोक 2
संस्कृत:
सन्तोऽपि निहतं कुर्वन्ति धर्मं यथा स्वधर्मनिष्ठाः। तेषां वन्दनं करिष्यामि सततं श्रुतिसंयुक्तम्॥
भावार्थ:
यहाँ संतों की धर्म की रक्षा में निष्ठा को दर्शाया गया है।
श्लोक 3
संस्कृत:
व्रतमयी विद्या मण्डले यत्र ब्राह्मणाः प्रतिष्ठिताः। तत्रैव सन्तः पूज्यन्ते पन्थाः सन्तः प्रसिद्दतः॥
भावार्थ:
यह श्लोक ब्राह्मणों और संतों के सम्मिलित महत्व को बताता है।
श्लोक 4
संस्कृत:
सन्ताः सदा धर्मसंधत्ताः शान्तिमार्गे गच्छन्ति जनाः। तेषां वन्दनं करोमि प्रज्ञया हृदयगम्यया॥
भावार्थ:
यह श्लोक संतों के शांति और धर्म मार्ग पर चलने का महत्व बताता है।
श्लोक 5
संस्कृत:
ब्राह्मणसंतसमागमे सदा भवति कल्याणकम्। तेषां वन्दनं करोमि सर्वदा भगवद्भक्तिसहितम्॥
भावार्थ:
यह श्लोक ब्राह्मणों और संतों के संगम के फलस्वरूप होने वाले कल्याण को दर्शाता है।
श्लोक 6
संस्कृत:
सन्तोर्नाम संतो देवाः सदाचारिणः सदाचराः। तेषां वन्दनां करोमि सर्वदा तस्मै नरदेवाय॥
भावार्थ:
यहाँ संतों को देवताओं के समान मानते हुए उनकी वन्दना की बात कही गई है।
श्लोक 7
संस्कृत:
ब्राह्मणसन्तयोः पूजनं धर्मस्य प्रधानं कारणम्। तेषां वन्दनं करिष्यामि प्रार्थना सहितं नरैः॥
भावार्थ:
यह श्लोक ब्राह्मणों और संतों की पूजा के महत्व को बताता है।