मानस की स्तुति
इस अध्याय में तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की महिमा और उसके आदर की स्तुति की है, जो भक्तों के हृदय में रामभक्ति की ज्योति जलाती है।
श्लोक 1
संस्कृत:
मानस धरा सुन्दरं रघुवंशप्रदीपकम् । रामभक्तिप्रदं ज्ञानं सर्वजनप्रियम् ॥
भावार्थ:
यह श्लोक रामचरितमानस को रघुवंश का प्रकाशक बताता है, जो भक्तों को ज्ञान और भक्ति देता है।
श्लोक 2
संस्कृत:
मानस सुधा सदानन्दं भक्ति विमल प्रकाशकम् । रामरूप दर्शनं तु जनमंगल कारणम् ॥
भावार्थ:
रामचरितमानस को अमृत और भक्तिपूर्ण प्रकाश के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
श्लोक 3
संस्कृत:
मानस पठनं तु भक्तिं जन्मं हृदय विकाशकम् । रामनामस्मरणं तु सर्वशत्रुनाशनम् ॥
भावार्थ:
मानस के पठन से भक्ति का विकास और राम नाम स्मरण से शत्रु विनाश होता है।
श्लोक 4
संस्कृत:
मानस गायनं तु मोक्षमार्गं प्रशस्तयेत् । रामचरितं वन्द्यं तु जनहितैषिणम् ॥
भावार्थ:
रामचरितमानस के गायन से मोक्ष की राह खुलती है और यह जनहितकारी है।
श्लोक 5
संस्कृत:
मानसधामं पूज्यं तु भक्तजनमंगलदं हि । रामचरितं पठनं सर्वदा फलप्रदं भवेत् ॥
भावार्थ:
मानस को पूजनीय स्थल और रामचरित के पाठ को फलदायक बताया गया है।
श्लोक 6
संस्कृत:
मानस सदा शरणं तु भक्तजन हिताय भवेत् । रामचरितं पाठेन मोक्षं सुलभं लभ्यते ॥
भावार्थ:
रामचरितमानस को भक्तों का शरण और मोक्ष का स्रोत बताया गया है।
श्लोक 7
संस्कृत:
मानस की महिमा तु सर्वत्र प्रख्यात भवानि । रामचरितं शुद्धं तु भक्तिप्रदं परमं फलम् ॥
भावार्थ:
रामचरितमानस की विश्वव्यापी महत्ता और उसके द्वारा भक्ति की प्राप्ति।
श्लोक 8
संस्कृत:
मानसपठनं तु सदा भक्तजन सुखप्रदं भवेत् । रामचरितं वन्द्यं तु जनहितकारकं हि ॥
भावार्थ:
रामचरितमानस के पठन और वंदन से भक्तों को सुख और जनहित मिलता है।
श्लोक 9
संस्कृत:
मानस की स्तुति तु सदैव मंगलकारिणी भवेत् । रामचरितं पाठेन जीवने सुखं लभ्यते ॥
भावार्थ:
मानस की स्तुति और रामचरितमानस के पाठ के जीवन में सुखदायक प्रभाव का वर्णन।
श्लोक 10
संस्कृत:
मानस धरा सदानन्दं भक्तजन सुखप्रदं हि । रामचरितं वन्द्यं तु परमसुखदायकम् ॥
भावार्थ:
रामचरितमानस की महत्ता और उसके आनंददायक, सुखदायक स्वरूप का वर्णन।