राक्षसों का अत्याचार
इस अध्याय में राक्षसों के अत्याचारों का वर्णन है, जिन्होंने जन-जीवन को कष्टमय बना दिया था।
श्लोक 1
संस्कृत:
राक्षसाः सर्वत्र व्याप्ताः जनानां दुःखकारिणः । म्लेच्छाः क्रूररूपा हन्तारः सर्वभयङ्कराः ॥
भावार्थ:
राक्षसों का भय और अत्याचार सम्पूर्ण जनसमाज को कष्ट में डाल रहा था।
श्लोक 2
संस्कृत:
ग्रामाणि तिनकेन हताः वसन्ति व्याकुलाः स्मरन्ति । मात्रं दुःखैः परिप्लुतं जनमानसम् अन्वगाह ॥
भावार्थ:
जन-जीवन राक्षसों के अत्याचारों से व्यथित और व्याकुल था।
श्लोक 3
संस्कृत:
रात्रौ जनाः सर्वे व्याकुलाः भयभीताः पुनः पुनः । राक्षसान् स्मरन्ति तु तत्र न निद्रा जाता कश्चन ॥
भावार्थ:
रात्रि में भय के कारण लोग चैन से नहीं सो पाते थे।
श्लोक 4
संस्कृत:
दुर्गा तु सन्निहिता तेषां रक्षाम् करिष्यति सर्वदा । भक्तजनानां प्राणप्रीत्यर्थं यः सदा समाहितः ॥
भावार्थ:
भक्तों की रक्षा के लिए दुर्गा माता की उपस्थिति को स्मरण कराया गया है।
श्लोक 5
संस्कृत:
रावणः तु क्रूरश्चैव सृष्ट्वा विपरीतकार्यम् । भक्तान् ताडयन् सर्वदा तस्मात् जनाः भयभीताः ॥
भावार्थ:
रावण के अत्याचारों से लोग भयभीत और पीड़ित थे।
श्लोक 6
संस्कृत:
शिवशम्भोः नमस्तेऽस्तु तस्मै हि शरणागताय । राक्षसविनाशाय च सर्वदा कृपालवेगसे ॥
भावार्थ:
शिव की शरण में जाकर राक्षसों से मुक्ति की कामना की जाती है।
श्लोक 7
संस्कृत:
जनानां प्राणरक्षणार्थं यत्नेन व्रजेमहि हि । रामस्य नाम महत् स्मरणं सर्वदुःखहरणम् ॥
भावार्थ:
राम नाम जप के द्वारा सभी कष्टों का नाश संभव है।
श्लोक 8
संस्कृत:
असुरान् वधयेद् वीरः धर्मराज्यस्य रक्षणाय । ततः सर्वे सुखेन वसन्ति जनाः पृथिव्यां हि ॥
भावार्थ:
राक्षसों का संहार धर्म की स्थापना के लिए आवश्यक है।
श्लोक 9
संस्कृत:
इति राक्षसदुष्टानां अत्याचारवर्णनं गतम् । जनमानसः क्लेशितं दुःखयुक्तं चिरं स्मरन् ॥
भावार्थ:
राक्षसों के अत्याचार जन जीवन को लम्बे समय तक प्रभावित करते रहे।