विष्णु का अवतार निर्णय
इस अध्याय में भगवान विष्णु के अवतार लेने के निर्णय का वर्णन है, जिससे धर्म की स्थापना हो।
श्लोक 1
संस्कृत:
धर्मसंस्थापनार्थं विष्णुः अवतारं वचः दत्ते । भवति यदा कालेऽस्मिन् जनसङ्कटनाशनाय च ॥
भावार्थ:
भगवान विष्णु संकट मोचक के रूप में अवतार लेकर धर्म की पुनः स्थापना करते हैं।
श्लोक 2
संस्कृत:
सृष्टौ च दुष्टानां हन्तुं धर्मपालनार्थकम् । अवतारः शाश्वतः सः सनातनधर्मसंरक्षकः ॥
भावार्थ:
विष्णु का अवतार सनातन धर्म के रक्षक के रूप में होता है।
श्लोक 3
संस्कृत:
प्रजापतिं तु नित्यं च वन्दे विष्णुं परमं गिरम् । अवतारसंकल्पाय यः सदैव प्रदर्शितः स्मरः ॥
भावार्थ:
विष्णु की महिमा और उनका अवतार लेने का संकल्प का स्मरण।
श्लोक 4
संस्कृत:
धर्मसमुर्ध्वकरणार्थं विष्णुना प्रवृत्तः कर्म । सर्वेषां जनसङ्कटानां नाशनं तु तस्य हेतुः ॥
भावार्थ:
विष्णु के कर्म धर्म की वृद्धि और संकट निवारण के लिए हैं।
श्लोक 5
संस्कृत:
इति विष्णोः अवतारं निश्चयेन जानाति जगत् । धर्मस्य रक्षणार्थं सदा भूत्वा प्रकटितः प्रभुः ॥
भावार्थ:
विश्व को यह ज्ञात है कि विष्णु सदा धर्म की रक्षा हेतु अवतार लेते हैं।