रामावतार का निर्णय
इस अध्याय में देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु राम रूप में अवतार लेने का निर्णय करते हैं। यह प्रसंग अत्यंत भावपूर्ण और भक्तों के लिए आशाप्रद है।
श्लोक 1
संस्कृत:
सुनि प्रभु बचन बिष्णु मन माहीं। हरष बिषाद बिचारि न काहिं॥
भावार्थ:
भगवान विष्णु ने ब्रह्मा के निवेदन को गंभीरता से सुना, लेकिन वे हर्ष या शोक से प्रभावित नहीं हुए।
श्लोक 2
संस्कृत:
भय बिनु होइ न प्रीति गुसाईं। जानिअ बात तात तेहिं भाईं॥
भावार्थ:
विष्णु जी ने कहा कि रावण जैसे अहंकारी को भय के द्वारा ही समझाया जा सकता है।
श्लोक 3
संस्कृत:
प्रभु बिचारि कृपा मन मानी। करिहउँ धरम हेतु अवतारी॥
भावार्थ:
भगवान विष्णु ने अंततः निर्णय लिया कि वे धरती पर अवतार लेंगे।
श्लोक 4
संस्कृत:
राम रूप धरि कपट बिरोधा। करिहउँ निज भगतन कर ओधा॥
भावार्थ:
वे राम रूप में अवतार लेकर अधर्म का विनाश और भक्तों का उद्धार करेंगे।
श्लोक 5
संस्कृत:
करिहउँ चरित भावन के भांती। लोक समुझि करिहिं जुग संती॥
भावार्थ:
भगवान राम का जीवन आचरण का प्रतीक बनेगा, जिसे युगों तक लोग अनुसरण करेंगे।
श्लोक 6
संस्कृत:
एहि बिधि बिचारि कृपानिधाना। हरषे सहित बोलि भगवाना॥
भावार्थ:
भगवान ने निर्णय लेकर प्रसन्नतापूर्वक अपने विचार प्रकट किए।
श्लोक 7
संस्कृत:
सुनहु सुर मुनि मन क्रम बानी। करिहउँ राम रूप ममता न जानी॥
भावार्थ:
भगवान विष्णु देवताओं को आश्वासन देते हैं कि वे निष्काम भाव से राम रूप में अवतरित होंगे।