राम के गुणों की प्रशंसा
इस अध्याय में भगवान राम के आदर्श गुणों, उनके चरित्र, पराक्रम और धर्म पालन की प्रशंसा की गई है। राम का व्यक्तित्व उनकी पवित्रता, न्यायप्रियता और भक्तिभाव के लिए उदाहरण है।
श्लोक 1
संस्कृत:
राम रूप सदा सुशोभित। धर्म पथ न कभी छोभित॥
भावार्थ:
राम का स्वरूप और धर्मनिष्ठा उन्हें सभी के लिए आदर्श बनाती है।
श्लोक 2
संस्कृत:
सत्य वचन सर्वदा वाचा। दीन दुखी पर करि सहारा॥
भावार्थ:
राम की वाणी में सत्य और करुणा का समावेश था।
श्लोक 3
संस्कृत:
वीर तेज समर नायक। अधर्म नाशक परहित कामक॥
भावार्थ:
राम की बहादुरी और धर्म रक्षा के लिए समर्पण अपरंपार था।
श्लोक 4
संस्कृत:
भक्त जन सेवा सदा करी। प्रभु भक्ति में मन लगाय॥
भावार्थ:
राम का जीवन भक्तिभाव से पूर्ण था।
श्लोक 5
संस्कृत:
धैर्य धारण हरषित हृदय। संकट में न हारै कभी॥
भावार्थ:
राम का स्थिर मनोबल उनकी महानता का प्रतीक है।
श्लोक 6
संस्कृत:
पिता मातु प्रति स्नेह गाढ। भ्रातृबंधु सम दया बाढ॥
भावार्थ:
राम का पारिवारिक प्रेम अतुलनीय था।
श्लोक 7
संस्कृत:
न्यायधर्मी सदैव न्याय करे। अन्याय से लोक दुख न सहे॥
भावार्थ:
राम का न्यायप्रिय चरित्र उनके राज्य की शांति और खुशहाली का आधार था।
श्लोक 8
संस्कृत:
सर्व जीव हितकारी राम। भक्ति भाव से करो मान॥
भावार्थ:
राम का समग्र दृष्टिकोण प्रेम और भक्ति से भरा है।