लोगोलोक में राम

नगर उत्सव

इस अध्याय में पूरे नगर में उत्सव की रंगीनी और आनंद का जीवंत चित्रण किया गया है। सभी लोग खुशियां मनाते हैं, परंपराओं का पालन होता है और नगर एक बड़े मेलों का रूप धारण करता है।

श्लोक 1

संस्कृत:

नगर पुर होय सुन्दर साजा। दीप दिय बत्तीस हजार साजा॥

भावार्थ:

उत्सव में नगर की शोभा और प्रकाश की भरमार होती है।

श्लोक 2

संस्कृत:

नृत्य गान होय सब मिलि काहा। बाजे मृदंग नगा सब बाढ़ा॥

भावार्थ:

सामूहिक उत्साह और संगीत से नगर की खुशहाली झलकती है।

श्लोक 3

संस्कृत:

सब जन मिलि करहें उल्लास। भयं हरहिं दुख सबके पास॥

भावार्थ:

उत्सव लोगों के मन से दुखों को दूर कर देता है।

श्लोक 4

संस्कृत:

फल फूल से होय नगर भरा। सुवासित सब मन धन धन धरा॥

भावार्थ:

प्राकृतिक सुंदरता और खुशहाली नगर को महका देती है।

श्लोक 5

संस्कृत:

धर्म लोक पालन होय सदा। नगर में सब सुखी बसा॥

भावार्थ:

सच्चा उत्सव तभी सफल होता है जब धर्म और सुख समृद्धि साथ हों।

श्लोक 6

संस्कृत:

जन जन हृदय में होय प्रेम। एक स्वर होय सबके थम॥

भावार्थ:

समूह की एकता और प्रेम से नगर का उत्सव पूर्ण होता है।