शिवजी का कथा प्रारंभ करना
इस अध्याय में तुलसीदास जी ने भगवान शिव की कथा प्रारंभ की है, जिसमें उनकी महिमा और भक्तों के लिए उनकी कृपा का वर्णन है।
श्लोक 1
संस्कृत:
शिवं शशिनभं भूतपावनं शिवात्मजम् । शिवपदप्राप्त्यै सदा तं नमामि सदाशिवम् ॥
भावार्थ:
यह श्लोक भगवान शिव की महिमा और उनकी पवित्रता का वर्णन करता है।
श्लोक 2
संस्कृत:
त्रिनेत्रं त्रिशूलधारीं गिरिजा पतिं शिवम् । भक्तवत्सलमाश्रयं सर्वसुखप्रदायकम् ॥
भावार्थ:
भगवान शिव को त्रिनेत्र, त्रिशूलधारी और भक्तों के स्नेही के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
श्लोक 3
संस्कृत:
नीलकण्ठं भूतनाथं कैलासवासिनं शिवम् । कालिकापतिं सर्वत्र वन्दे भवानि पतिम् ॥
भावार्थ:
यहाँ शिवजी के अनेक नाम और उनके दिव्य स्वरूप का उल्लेख है।
श्लोक 4
संस्कृत:
जटाजूटसमायुक्तं पद्मनाभं महाद्युतिम् । भूतवन्द्यं महेशं शिवं सर्वलोकनाथकम् ॥
भावार्थ:
भगवान शिव के दिव्य रूप और उनकी सर्वव्यापकता का वर्णन।
श्लोक 5
संस्कृत:
विनाशकरं महादेवम् भक्तवत्सलं शुभम् । शिवं नित्यं सुमंगलं तं वन्दे जगदाधारम् ॥
भावार्थ:
शिवजी की विनाश करने वाली, शुभ और भक्तप्रिय शक्तियों का उल्लेख।
श्लोक 6
संस्कृत:
सदाशिवं सनातनं योगेशं कल्याणदं च । भक्तजन हितकारीं तं वन्दे हरिहरप्रभुम् ॥
भावार्थ:
शिवजी के सनातन और कल्याणकारी स्वरूप की स्तुति।
श्लोक 7
संस्कृत:
महाकालं महाशक्तिं महाध्यानपात्रकम् । महादेवमीशं चन्द्रशेखरं वन्दे भक्तवत्सलम् ॥
भावार्थ:
शिवजी के विभिन्न दिव्य नामों और भक्तों के प्रति उनके प्रेम का वर्णन।
श्लोक 8
संस्कृत:
शिवं शम्भुमभयदं सर्वपापहरं शुभम् । नमो नमः शरणं तस्मै सदा शिवाय तुष्टये॥
भावार्थ:
भगवान शिव को बार-बार प्रणाम करना जो भय और पापों का नाश करता है।