अवध राज्य का वर्णन
इस अध्याय में तुलसीदास जी ने श्रीराम के जन्मस्थल अवध के राज्य का सुन्दर वर्णन किया है, जहाँ धर्म और संस्कृति की पूर्ण समृद्धि थी।
श्लोक 1
संस्कृत:
अवधपुरीं सदाकालं धर्मभूमिं महोदधिम् । रामराज्यं चिरंतनं जनहिते प्रशंसितम् ॥
भावार्थ:
अवध को धर्म और कल्याण की भूमि बताते हुए उसकी महत्ता दर्शाई गई है।
श्लोक 2
संस्कृत:
सुहृदां शान्तिप्रियाणां च हृदयस्थली प्रसीदति । सर्वसंपदां समृद्धिं लोकहिते सदा ददाति ॥
भावार्थ:
अवध की सामाजिक शांति और समृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।
श्लोक 3
संस्कृत:
नानावर्णसम्पन्ना पृथिवी धर्मरश्मिभिः सदा । विद्यया युक्ता शोभन्ते लोकहिते महोदधि ॥
भावार्थ:
अवध के विविधता, धर्म और ज्ञान से समृद्ध होने का उल्लेख।
श्लोक 4
संस्कृत:
सरसजलधारिणी च नदीनां सुव्यवस्थिताः । वनानि च पुष्पितानि पञ्चतत्त्वरूपिणी ॥
भावार्थ:
अवध की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरण का वर्णन।
श्लोक 5
संस्कृत:
राजधर्मं परिपालयन्ति सत्पुरुषा महायशाः । जनसुखाय समृद्धिं च विधाय यशस्विनः ॥
भावार्थ:
अवध के राजाओं के धर्मपालन और जनकल्याण की भूमिका।
श्लोक 6
संस्कृत:
धर्मचरणे सदा स्थिताः पण्डिताः सत्पुरुषा च । लोकहिताय प्रवृत्ताः सद्भावना विन्धते ॥
भावार्थ:
अवध की धार्मिक और सामाजिक संरचना की प्रशंसा।
श्लोक 7
संस्कृत:
सुखदुःखसहायार्थं जनाः एकतां विहरन्ति । सद्भावनया युक्ताः सदा अवधं पूज्यं मन्यते ॥
भावार्थ:
अवध के लोगों की एकता और भाईचारे का उल्लेख।
श्लोक 8
संस्कृत:
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । अवधभूमिः रमणीया सर्वजनकल्याणदा ॥
भावार्थ:
अवध की समग्र करुणा और लोकहितकारी प्रकृति।
श्लोक 9
संस्कृत:
रामराज्यस्य आधारं अवधं सुन्दरभूमिम् । धर्मधामं जनकल्याणाय सदैव स्थाप्यते ॥
भावार्थ:
अवध की भूमिका रामराज्य और धर्म के आधार के रूप में।
श्लोक 10
संस्कृत:
तुलसीदासविरचितं लोकहितप्रदं रामकथासारम् । अवधं वन्दे सदाशिवप्रियं धर्मभूमिं चिरं जयतु ॥
भावार्थ:
तुलसीदास की महिमा के साथ अवध की स्तुति।