विश्वामित्र का प्रसन्न होना
इस अध्याय में श्रीराम द्वारा राक्षसों का वध करने के बाद महर्षि विश्वामित्र अत्यंत प्रसन्न होते हैं। वे श्रीराम और लक्ष्मण की प्रशंसा करते हैं, आशीर्वाद देते हैं और उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्रदान करते हैं। यह अध्याय गुरु-शिष्य संबंध की ऊँचाई को दर्शाता है।
श्लोक 1
संस्कृत:
प्रेम समेत मुनि कहेँ बड़ाई। राम लखन रिपु संहत जाई॥
भावार्थ:
महर्षि विश्वामित्र राम-लक्ष्मण के पराक्रम से अत्यंत प्रसन्न होकर उनकी सराहना करते हैं।
श्लोक 2
संस्कृत:
धन्य रघुकुल रत्न दोऊ भाई। जिन समर भूमि रिपु दल सम्हाई॥
भावार्थ:
गुरु विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को रघुवंश का गौरव कहते हैं।
श्लोक 3
संस्कृत:
आनंद मगन मुनि मन राता। दीन सनाथ भए जग जाता॥
भावार्थ:
राम के आगमन और राक्षस-वध से ऋषियों को सुरक्षा का भाव प्राप्त होता है।
श्लोक 4
संस्कृत:
बोलि विश्वामित्र मृदु बानी। राम कृपा मोहि बड़ि हित मानी॥
भावार्थ:
ऋषि विश्वामित्र श्रीराम के सहयोग को महान कृपा मानते हैं।
श्लोक 5
संस्कृत:
दिए अस्त्र सब मुनि प्रसन्ना। गदा चक्रादि सकल अमन्ना॥
भावार्थ:
विश्वामित्र राम को दिव्य आयुधों की शिक्षा और प्रयोग का अधिकार देते हैं।
श्लोक 6
संस्कृत:
शुभ दिन देखि मुनि उर भाया। चलौं नगर अब सुभ सुखदाया॥
भावार्थ:
ऋषि विश्वामित्र अब यज्ञ पूर्ण कर श्रीराम को लेकर अगली यात्रा की योजना बनाते हैं।