लोगोलोक में राम

सिद्धाश्रम में प्रवास

इस अध्याय में श्रीराम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ सिद्धाश्रम में कुछ समय व्यतीत करते हैं। यहाँ वे वेद-शास्त्रों, अस्त्र-शस्त्रों का गहन अभ्यास करते हैं और ऋषियों के सत्संग से जीवन के गूढ़ तत्वों को आत्मसात करते हैं। आश्रम में उनका यह प्रवास आत्मबल, भक्ति और गुरुसेवा से परिपूर्ण होता है।

श्लोक 1

संस्कृत:

सिद्धाश्रम पहुँचे मुनि सत्ताई। संग राम लखन दो भाई॥

भावार्थ:

तीनों जन पवित्र सिद्धाश्रम में पहुँचते हैं जहाँ अनेक ऋषि-मुनि निवास करते हैं।

श्लोक 2

संस्कृत:

आसन देइ मुनिन्ह बुलाई। कीन्ह पाद पद्म जल लाई॥

भावार्थ:

आश्रम के ऋषियों ने प्रेमपूर्वक उनका सत्कार किया।

श्लोक 3

संस्कृत:

राम लखन मुनि संग निहारी। भए हर्षित जन अपारी॥

भावार्थ:

सभी ऋषि-मुनि युवा राजकुमारों की दिव्यता से प्रभावित होते हैं।

श्लोक 4

संस्कृत:

वेद पाठ तप साधन भारी। करत रामु लखन सुखकारी॥

भावार्थ:

वे न केवल युद्ध-कला में, बल्कि आध्यात्मिक अभ्यास में भी पारंगत होते हैं।

श्लोक 5

संस्कृत:

दिव्य अस्त्र मुनि सिखावन करहीं। नियम धर्म रहनि सब धरहीं॥

भावार्थ:

गुरु द्वारा सिखाए गए सभी ज्ञान को वे श्रद्धा से सीखते हैं।

श्लोक 6

संस्कृत:

प्रात काल मुनि साथ नहाहीं। जप तप यज्ञ मति अनुराहीं॥

भावार्थ:

उनका दिनचर्य अत्यंत सात्विक और अनुशासित होता है।

श्लोक 7

संस्कृत:

दिन बीते तप मुनि मन रीजे। राम लखन लघु ब्रह्म समीपे॥

भावार्थ:

उनकी सेवा, विद्या और विनय ने ऋषियों के हृदय को जीत लिया।