ऋषि विश्वामित्र का आगमन
इस अध्याय में महान तपस्वी ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के दरबार में आते हैं। उनका आगमन राजमहल में आदरपूर्वक होता है, और वे एक विशेष उद्देश्य से राम और लक्ष्मण को मांगने आते हैं, जिससे उनके यज्ञ की रक्षा हो सके।
श्लोक 1
संस्कृत:
एहि बिधि एक बार गसाईं। आयउ बिप्र बरअसि सन्हाईं॥
भावार्थ:
ऋषि विश्वामित्र का आगमन अयोध्या में होता है।
श्लोक 2
संस्कृत:
सुनि मुनि आगमनु रघुराई। तुरत उठे दीन्हे जल पाई॥
भावार्थ:
राजा दशरथ ने आदरपूर्वक ऋषि विश्वामित्र का सत्कार किया।
श्लोक 3
संस्कृत:
आए सुमित्रानंदन भ्राता। मुनिहिं देखि पुलकित तनु गाता॥
भावार्थ:
राजकुमार मुनि के दर्शन से अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
श्लोक 4
संस्कृत:
पूजा करि मुनि बैठे तबहीं। राजसभा रघुबंस रत वहीं॥
भावार्थ:
राजा ने ऋषि की पूजा कर उन्हें उचित आसन पर बैठाया।
श्लोक 5
संस्कृत:
सादर रघुपति पूछे बाता। सुनि मुनिबर सुखु पाइहिं गाता॥
भावार्थ:
राजा ने अत्यंत विनम्रता से ऋषि का उद्देश्य जानना चाहा।
श्लोक 6
संस्कृत:
मुनि बोले सुनहु नृप साचा। मोहि चाहिअहिं रघुनंदन काचा॥
भावार्थ:
ऋषि विश्वामित्र राम को अपने यज्ञ की रक्षा के लिए मांगते हैं।
श्लोक 7
संस्कृत:
बालक दोउ सुंदर सुभाऊ। देव रचित करु अति चतुराऊ॥
भावार्थ:
ऋषि विश्वामित्र राम-लक्ष्मण के गुणों की सराहना करते हैं।