विवाह समारोह
इस अध्याय में भगवान श्रीराम और सीता जी के पावन विवाह का अत्यंत भावपूर्ण और भव्य चित्रण किया गया है। जनकपुरी उत्सव के रंग में रँगी हुई है, और देव-मानव सभी इस दिव्य मिलन का साक्षात्कार कर रहे हैं।
श्लोक 1
संस्कृत:
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजर बिहारी॥
भावार्थ:
राम का विवाह केवल सांसारिक नहीं, दिव्य और कल्याणकारी है।
श्लोक 2
संस्कृत:
सजी सभा सब गुनगन गाई। जनक सहित सब विधि बोलाई॥
भावार्थ:
विवाह समारोह वेदपरंपरा और उल्लास का संगम था।
श्लोक 3
संस्कृत:
सिया राममय नगरु सुहावा। मंगल धुनि सब ओर बजावा॥
भावार्थ:
विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, पूरे नगर का उत्सव बन गया।
श्लोक 4
संस्कृत:
गुरु वशिष्ठ मन्त्र उच्चराया। वेद विधिपूर्वक लग्न सजाया॥
भावार्थ:
पूरे विधिविधान से विवाह संपन्न हो रहा था।
श्लोक 5
संस्कृत:
वर रामु जनक बैठ भए। सिया सहित सब दृष्टि लए॥
भावार्थ:
विवाह का दृश्य अलौकिक और ध्यान केंद्रित करने वाला था।
श्लोक 6
संस्कृत:
फेरे लै सप्त पदि साचे। गंध सुवास बरसे आछे॥
भावार्थ:
सप्तपदी ने इस विवाह को आत्मिक और पवित्र बना दिया।
श्लोक 7
संस्कृत:
देव बरात उठे गगन ऊपर। पुष्पवर्षा करि भए प्रमुद भर॥
भावार्थ:
यह विवाह केवल मानव नहीं, देवताओं के लिए भी उत्सव था।
श्लोक 8
संस्कृत:
जनक मगन दीन्ह बड़ि ओरी। रतन द्रव्य बिप्रन्ह के जोरी॥
भावार्थ:
राजा जनक की उदारता और उल्लास प्रकट होता है।
श्लोक 9
संस्कृत:
सादर हिये राखे सब पाहीं। राम सिया विवाह रस चाहीं॥
भावार्थ:
यह विवाह संस्कार का सर्वोच्च उदाहरण बन गया।