लोगोलोक में राम

जनकपुरी की शोभा

इस अध्याय में जनकपुरी की दिव्य शोभा का वर्णन है, जहाँ सीता स्वयंवर के अवसर पर नगर को स्वर्ग के समान सजाया गया था। नगरवासी उल्लास से भरपूर थे और चारों ओर भव्यता व सांस्कृतिक वैभव का दर्शन होता था।

श्लोक 1

संस्कृत:

सजि जनकपुरि सब ओर सुहाई। रत्न जटित गज गामिनी छाई॥

भावार्थ:

नगर की भव्य सजावट और राजसी ठाट का चित्रण।

श्लोक 2

संस्कृत:

कनक मंडप मंजुल बिलसत। चित्रित चित्र अनेक ललसत॥

भावार्थ:

नगर की वास्तुकला और कला की महिमा।

श्लोक 3

संस्कृत:

चहुं दिसि गावत नर नारि। मंगल गीत लाज न बारी॥

भावार्थ:

जनकपुरी में आनंद और सांस्कृतिक उल्लास का वातावरण।

श्लोक 4

संस्कृत:

धूप दीप नैवेद्य सुगंधा। फूली फुलवारी तुलसिके बंधा॥

भावार्थ:

धार्मिक और प्राकृतिक शोभा का संगम।

श्लोक 5

संस्कृत:

बाजत मृदंग झंझर ध्वनि। राग रंग भरि करत रस पंक्ति॥

भावार्थ:

संगीत और नृत्य का अभूतपूर्व आयोजन।

श्लोक 6

संस्कृत:

सुंदरीं सजि सजि चलतिन गली। नयन मन हरनि रूप लावली॥

भावार्थ:

नगर की नारियों का रूप और संस्कृति की झलक।

श्लोक 7

संस्कृत:

जनक दरबार सुभग सुभीता। बैठा सब असमंजस सीता॥

भावार्थ:

राजदरबार का वैभव और सीता की गंभीरता।

श्लोक 8

संस्कृत:

सकल नगर निज भाग्य सराही। देखि जनकपुरी सोभा साही॥

भावार्थ:

नगरवासियों का गौरव और संतोष जनकपुरी की अद्भुत शोभा पर।