बालकों का बाल्यकाल
इस अध्याय में चारों राजकुमारों—राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न—के बाल्यकाल की लीला, चेष्टाएँ और उनकी मोहक सुंदरता का वर्णन किया गया है। नगरवासी भी उनके दर्शन मात्र से धन्य होते हैं।
श्लोक 1
संस्कृत:
सुकृत सिन्दु रघुबर बालचरित। मनहु जीव जग महँ बिरल अमित॥
भावार्थ:
रामजी का बचपन संसार के लिए अत्यंत पुण्यकारी और दुर्लभ अनुभूति है।
श्लोक 2
संस्कृत:
भूपु भवन जबहि बालक भए। भूपति सचिव सब हर्षित भए॥
भावार्थ:
राजकुमारों के जन्म और बढ़ने से पूरा दरबार हर्षित हो गया।
श्लोक 3
संस्कृत:
क्रीड़ा करत सकल नर नारी। देखि बाल छबि होहिं सुखारी॥
भावार्थ:
राजकुमारों की खेल-कूद सबको अत्यंत आनंद देती थी।
श्लोक 4
संस्कृत:
देखि बाल छबि लखि मन मोहा। जनु ब्रह्म माया बसहु संकोचा॥
भावार्थ:
चारों भाईयों की सुंदरता और आभा अद्वितीय थी।
श्लोक 5
संस्कृत:
धरणि धरहु न धीरज धारा। देखि बाल चौकस चित चारा॥
भावार्थ:
उनकी बाल लीलाएँ इतनी आकर्षक थीं कि प्रकृति भी ठहर नहीं सकी।
श्लोक 6
संस्कृत:
जननी जग्य करइ पुर दारा। देखि बाल करतल कलकारा॥
भावार्थ:
उनकी भोली चेष्टाएँ घर के हर कोने में आनंद बरसाती थीं।
श्लोक 7
संस्कृत:
बाल लीला यह रहै निहारी। भगत हृदय बसहिं तेहि छवि प्यारी॥
भावार्थ:
भगवान की बाल लीलाएँ भक्तों के लिए दिव्य ध्यान और प्रेम का स्रोत बन जाती हैं।