यज्ञ के लिए तैयारियाँ
इस अध्याय में राजा दशरथ पुत्रों के नामकरण संस्कार और यज्ञ की तैयारी करते हैं। यज्ञशाला को सुंदर रूप से सजाया जाता है, और श्रेष्ठ ब्राह्मणों को आमंत्रित कर विधिपूर्वक कर्मकांड आरंभ किए जाते हैं।
श्लोक 1
संस्कृत:
बिप्रन्ह बोलि बोलाए मुनिन्हहि। कीन्हि साज सब बिधि विधिन्हहि॥
भावार्थ:
राजा दशरथ ने यज्ञ के लिए योग्य विद्वानों और ऋषियों को आमंत्रित किया।
श्लोक 2
संस्कृत:
मंत्र जपहि श्रुति मार्ग प्रसंसा। कीन्हि यज्ञ सब रीति अनंता॥
भावार्थ:
सम्पूर्ण यज्ञ वैदिक रीति-नीति से किया गया।
श्लोक 3
संस्कृत:
भूपति सकल धर्म रति लागे। यज्ञ करत जिमि श्रुति अनुरागे॥
भावार्थ:
दशरथ जी यज्ञ को पूरी श्रद्धा से सम्पन्न करा रहे थे।
श्लोक 4
संस्कृत:
रचि मंडप मुनि करहि बिचारा। चारि दिशा बहु बिधि उजियारा॥
भावार्थ:
यज्ञ मंडप की सुंदर सजावट और वैदिक विधान से माहौल पवित्र बना।
श्लोक 5
संस्कृत:
मंगल गावहि गावत बंदी। बाजत नाद तुरहिन्ह मृदंगीं॥
भावार्थ:
समारोह का वातावरण आनंदमय और उल्लासपूर्ण बनता है।
श्लोक 6
संस्कृत:
कहत कथा श्रुति मुनि बृंदा। भए सकल जग मंगल चंदा॥
भावार्थ:
यज्ञ से सम्पूर्ण वातावरण में शुभता और शांति फैल गई है।