गुरु वशिष्ठ के पास शिक्षा
इस अध्याय में श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा जाता है। वहाँ वे वेद, शास्त्र और धर्म की गहन विद्या प्राप्त करते हैं और आज्ञाकारी, विनम्र शिष्यों के रूप में गुरु की सेवा करते हैं।
श्लोक 1
संस्कृत:
गुरु गवन पायउ दिनु सुखदाई। साजि सिखावन गए रघुराई॥
भावार्थ:
श्रीराम और उनके भाई उत्साहपूर्वक गुरु वशिष्ठ के पास शिक्षा ग्रहण करने रवाना होते हैं।
श्लोक 2
संस्कृत:
गुरु गृह गए राजकुमार। देखि चरित हर्षे मुनि सार॥
भावार्थ:
गुरु वशिष्ठ उनके विनम्र व्यवहार और तेजस्विता से प्रसन्न होते हैं।
श्लोक 3
संस्कृत:
कहत सुनत सब बिधि सिखहीं। गुर सनेह उपदेसहिं लिखहीं॥
भावार्थ:
चारों भाई शिक्षा में गहरी रुचि लेकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करते हैं।
श्लोक 4
संस्कृत:
चारि कुमार धर्म रत चारी। सचिव पुत्र गुन अनुसारी॥
भावार्थ:
राजकुमारों के साथ मंत्री पुत्र भी आश्रम में शिक्षा ले रहे होते हैं।
श्लोक 5
संस्कृत:
गुरु सेवक सब सुखी सुसंस्कारी। रघुकुल मनि गुन निधि नित भारी॥
भावार्थ:
गुरुकुल का वातावरण अत्यंत पवित्र और अनुशासित है।
श्लोक 6
संस्कृत:
सिखहि वेद पुरान बिस्वासा। नीति धर्म गुन ज्ञान प्रकासा॥
भावार्थ:
चारों राजकुमार धार्मिक और शास्त्रीय शिक्षा को श्रद्धापूर्वक सीखते हैं।
श्लोक 7
संस्कृत:
दिन दिन बढ़त तेज बल साचा। देखि गुरू मन हर्ष अति आचा॥
भावार्थ:
शिक्षा के साथ-साथ उनका आत्मबल और तेज भी बढ़ता जाता है।
श्लोक 8
संस्कृत:
बिनय सहित सेवक सब भाई। गुरु गृह रहे धरम सुधाई॥
भावार्थ:
चारों भाई गुरु के घर विनम्र भाव से रहकर धर्म का पालन करते हैं।