लोगोलोक में राम

बारात की विदाई

इस अध्याय में चारों भाइयों के विवाह के उपरांत जनकपुर से अयोध्या के लिए बारात की भावुक विदाई होती है। जनक और सती सुदृष्टि अश्रुपूरित नेत्रों से अपनी पुत्रियों को विदा करते हैं। नगरवासी भावविह्वल हैं, परंतु मंगल कामनाओं के साथ सभी युगलों को विदा किया जाता है।

श्लोक 1

संस्कृत:

बधू सहित जब चले बराती। हर्ष बिषाद भये द्विविध भाँती॥

भावार्थ:

विवाह की खुशी के साथ पुत्रियों की विदाई का दुःख भी सबको अनुभव हुआ।

श्लोक 2

संस्कृत:

जनक सिया उर्मिला लै आई। गदगद गिरा बचन न बन आई॥

भावार्थ:

जनक अपनी पुत्रियों को विदा करते हुए अत्यंत भावुक हो उठते हैं।

श्लोक 3

संस्कृत:

सुदृष्टि देखि श्रुतिकीर्ति मांडवी। नयन बारी बारिहिं रस पावनी॥

भावार्थ:

माता सुदृष्टि अपनी कन्याओं को विदा करते हुए अश्रुपूरित हो जाती हैं।

श्लोक 4

संस्कृत:

नगरा नागर सब मिलि रोवहिं। पथ पहरि जलधार बहावहिं॥

भावार्थ:

जनकपुर के नागरिकों की आँखें विदाई में नम थीं — वातावरण करुणा से भर गया।

श्लोक 5

संस्कृत:

मंगल गान धुनि बाजत बंधि। चले बरात लिए जनु चंदि॥

भावार्थ:

शुभ संगीत के बीच विवाह युगल और बारात अयोध्या के लिए प्रस्थान करती है।

श्लोक 6

संस्कृत:

सकल जनकपुर दीन्ह बिदाई। रामहि देखि पुलक तनु छाई॥

भावार्थ:

जनकपुरवासियों ने श्रीराम को श्रद्धा और प्रेम से विदा किया।