जनक का भाषण
इस अध्याय में राजा जनक विवाहोपरांत श्रीराम, सीता और चारों दंपतियों को गहन और मार्मिक उपदेश देते हैं। उनका भाषण नीति, धर्म, सेवा, शील और गृहस्थ जीवन के आदर्शों से भरपूर है। यह प्रसंग भारतीय पारिवारिक मूल्यों और एक पिता के दायित्वों का उत्कृष्ट उदाहरण है।
श्लोक 1
संस्कृत:
सुनहु राम सिय आदरि बोलें। बचन बिधान सरिस अनुचोलें॥
भावार्थ:
जनक अपने भावों को मर्यादित और धर्मयुक्त वाणी में प्रकट करते हैं।
श्लोक 2
संस्कृत:
नारि सुभाउ न जानइ मोरा। कहिअ बचन समुझि सब तोरा॥
भावार्थ:
जनक स्त्री की कोमलता और मर्यादा की रक्षा का आग्रह करते हैं।
श्लोक 3
संस्कृत:
सीता धरम पथहि मन लाई। पति अनुजीवनि सुता सुहाई॥
भावार्थ:
जनक सीता को आदर्श पत्नी के रूप में आचरण करने की शिक्षा देते हैं।
श्लोक 4
संस्कृत:
प्रेम सहित रहिअ परिवारहि। कहिअ मधुर बचन विचारहि॥
भावार्थ:
परिवारिक जीवन की मिठास प्रेम और वाणी की कोमलता से बनी रहती है।
श्लोक 5
संस्कृत:
गृह धर्म कठिन जग कहहिं सुजाना। सेवहिं ते नर न पाइअ जाना॥
भावार्थ:
जनक गृहस्थ धर्म को तपस्या के समकक्ष बताते हैं।
श्लोक 6
संस्कृत:
जनक बचन सुनि भरे लोचना। सियाराम सहित सब हर्षना॥
भावार्थ:
जनक का भाषण इतना मार्मिक था कि उपस्थित सभी जन भावुक हो गए।