लोगोलोक में राम

चारों भाइयों का विवाह

इस अध्याय में श्रीराम और सीता के विवाह के पश्चात जनक की पुत्रियों का विवाह क्रमशः लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न से किया जाता है। यह दिव्य विवाह चारों भाइयों और चारों बहनों के बीच आदर्श युगल की स्थापना करता है, जो धर्म, प्रेम और मर्यादा का प्रतीक है।

श्लोक 1

संस्कृत:

सिय विवाह भइ सब पुर बखाना। पुनि जनक बोले बचन सुहाना॥

भावार्थ:

सीता-राम विवाह के बाद जनक अन्य कन्याओं के विवाह की ओर संकेत करते हैं।

श्लोक 2

संस्कृत:

उर्मिला लछिमन हित जोड़ी। बर बधून्हि देखि पुलकु थोरी॥

भावार्थ:

लक्ष्मण और उर्मिला का विवाह आनंदपूर्वक तय होता है।

श्लोक 3

संस्कृत:

मांडवी भरत सुमुखि सुजानी। श्रुतिकीर्ति शुभ शत्रुघ्न भानी॥

भावार्थ:

जनक ने अपनी चारों पुत्रियों का चारों भाइयों से आदर्श विवाह संयोजित किया।

श्लोक 4

संस्कृत:

गुरु वशिष्ठ कहे सब रितु साजा। होहिं बिआह सुखद समाजा॥

भावार्थ:

गुरु वशिष्ठ की देखरेख में सभी विवाह उत्सव विधिपूर्वक संपन्न होते हैं।

श्लोक 5

संस्कृत:

चारिउ बिआह भइ हिय हरषे। मंगल बाजे नगर नर नषे॥

भावार्थ:

सम्पूर्ण जनकपुर विवाह के उल्लास में मग्न हो गया।

श्लोक 6

संस्कृत:

जनक दशरथ देखि बराता। बोलन लगे बचन सुखदाता॥

भावार्थ:

जनक अपनी संतोष और कृतज्ञता दशरथ के प्रति प्रकट करते हैं।

श्लोक 7

संस्कृत:

धन्य बड़भागी भूमि अयोध्या। जहँ भए राम सिया वर सौभाग्या॥

भावार्थ:

जनक राम और अयोध्या की महिमा का बखान करते हैं।

श्लोक 8

संस्कृत:

मातु-पिता हित कारज कीन्हा। बड़ भाग चारु युगल सब लीन्हा॥

भावार्थ:

विवाह एक कर्तव्य और सौंदर्यपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के रूप में पूर्ण हुआ।

श्लोक 9

संस्कृत:

पुरजन परिजन सहित बहोरी। दिए बधाई सकल कछोरी॥

भावार्थ:

चारों विवाहों की सफलता से पूरा राज्य आनन्द से भर गया।

श्लोक 10

संस्कृत:

सुर मुनि नाग सिद्ध मुनि ध्याना। देखे बिआह रूप सुख माना॥

भावार्थ:

यह विवाह केवल भौतिक नहीं था — यह ब्रह्मांडीय रूप से पूजनीय था।