विदा का प्रसंग
इस अध्याय में राजा जनक अपनी पुत्रियों और राम सहित चारों राजकुमारों को भावभीनी शिक्षा देते हुए विदा करते हैं। यह प्रसंग केवल विदाई नहीं, बल्कि एक पिता द्वारा जीवन के आदर्शों का अंतिम उपदेश भी है, जो धर्म, सेवा और गृहस्थ धर्म की मर्यादाओं से ओतप्रोत है।
श्लोक 1
संस्कृत:
जनक बोले बचन मन भारी। प्रीति बिलोकत लोचन बारी॥
भावार्थ:
जनक विदा के समय संयम रखते हुए पुत्रियों को प्रेमपूर्वक उपदेश देते हैं।
श्लोक 2
संस्कृत:
धीरज धरहु सुता सिय प्यारी। ससुर गृहन जनि होहु कुलभारी॥
भावार्थ:
जनक सीता को पत्नी और बहू के रूप में कर्तव्यों की याद दिलाते हैं।
श्लोक 3
संस्कृत:
सीलु सुभाउ संतोषु सनेहु। धरम निपट गृह करम सनेहु॥
भावार्थ:
राजा जनक गृहस्थ जीवन के मूल गुणों का उपदेश देते हैं।
श्लोक 4
संस्कृत:
बोलिअ बचन सुभाउ बिचारी। सिर झुकाइ करिअ सेवकाई॥
भावार्थ:
जनक आज्ञाकारी, नम्र और विवेकशील जीवन की शिक्षा दे रहे हैं।
श्लोक 5
संस्कृत:
जनक सिखाइ बहुरि गहि बहोरी। बोले बचन प्रीति रस भोरी॥
भावार्थ:
जनक अपनी भावनाओं को छिपाते हुए पुत्रियों को स्नेहपूर्वक विदा करते हैं।