लोगोलोक में राम

चारों भाइयों का जन्म

इस अध्याय में भगवान श्रीराम तथा उनके तीनों भाइयों – भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न – का अवतार और जन्मोत्सव का वर्णन है। सम्पूर्ण अयोध्या में आनंद की लहर छा जाती है।

श्लोक 1

संस्कृत:

नवमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥

भावार्थ:

भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी के दिन, अत्यंत शुभ मुहूर्त में हुआ।

श्लोक 2

संस्कृत:

मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा॥

भावार्थ:

यह समय सृष्टि के लिए शांति और मंगलकारी था – न अधिक गर्मी, न ठंड।

श्लोक 3

संस्कृत:

शुभ ग्रह नखतर सकल अनूपा। करहिं आप निज धर्म अनूपा॥

भावार्थ:

समस्त ब्रह्मांड में उस समय शुभता और संतुलन का साम्राज्य था।

श्लोक 4

संस्कृत:

जन्में राम लखन जनु मोती। भरत सत्रुधन सहित सुख रितु होती॥

भावार्थ:

चारों भाइयों का जन्म दिव्यता और आनंद की वर्षा के समान था।

श्लोक 5

संस्कृत:

जनमा राम सुमंगल दायक। हरषि गगन दुमदंब गायक॥

भावार्थ:

भगवान राम के जन्म के साथ ही आकाश और पृथ्वी दोनों उल्लासित हो उठे।

श्लोक 6

संस्कृत:

नर मुनि सुर ब्रह्मादिक जोगी। राम जन्म सुनि भए बिस्मोगी॥

भावार्थ:

सभी लोकों में हर्ष फैल गया, सबने रामावतार की खबर को उत्सव की तरह लिया।

श्लोक 7

संस्कृत:

सहित चारि भाई अति सोभा। दरशि सकल जगत मन लोभा॥

भावार्थ:

राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की रूपराशि देखने योग्य थी – सभी का हृदय मोह लेते थे।

श्लोक 8

संस्कृत:

कहि न सकहिं सुर मुनि मनु जाई। राम रूप लखि बिमल सुभाई॥

भावार्थ:

राम के रूप की सुंदरता अवर्णनीय थी – देवताओं तक के लिए वर्णन असंभव।

श्लोक 9

संस्कृत:

बाजत मंदिर मृदुल मुरजापा। गावत भूप मगन मन तापा॥

भावार्थ:

राजमहल में जन्मोत्सव का वातावरण था – संगीत और उल्लास का संगम।

श्लोक 10

संस्कृत:

जनु सुरसरि सरि भई समाना। सुखमय भए सकल निधाना॥

भावार्थ:

राम जन्म के साथ ही अयोध्या में समस्त सुख-शांति का समावेश हो गया।