लोगोलोक में राम

देवताओं की स्तुति

इस अध्याय में रावण के अत्याचारों से पीड़ित देवता भगवान विष्णु की स्तुति करते हैं और उनसे राक्षसों के विनाश हेतु अवतार लेने की प्रार्थना करते हैं।

श्लोक 1

संस्कृत:

जेहि बिधि सुरन्ह करि प्रभु सेवा। सो सब कहेउँ सप्रेम सनेहा॥

भावार्थ:

देवताओं ने भगवान की स्तुति कर उनकी सेवा और विनती को आदरपूर्वक व्यक्त किया।

श्लोक 2

संस्कृत:

जाचत सुर सब करि कर जोरी। कृपा सिंधु कीजै रघुोरी॥

भावार्थ:

देवताओं ने भगवान विष्णु से करुणा पूर्वक अवतार लेकर रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की।

श्लोक 3

संस्कृत:

नासहु सकल देव दुख भारी। सुर समाज करि बिनय तुम्हारी॥

भावार्थ:

वे भगवान से अपने संकटों के निवारण और धर्म की पुनर्स्थापना की प्रार्थना करते हैं।

श्लोक 4

संस्कृत:

देखि बिनय सुरन्ह करि भारी। प्रगटेउँ तात कृपानिधि हारी॥

भावार्थ:

भगवान ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर प्रकट होने का निर्णय लिया।