विवाह की तैयारी
इस अध्याय में राजा दशरथ बारात सहित मिथिला पहुँचते हैं। दोनों राजपरिवारों में हर्ष का वातावरण होता है और विवाह की भव्य तैयारियाँ शुरू होती हैं। नगर को सजाया जाता है, वेदपाठी ब्राह्मण विवाह विधियों की व्यवस्था करते हैं, और सारा वातावरण मंगलमय हो जाता है।
श्लोक 1
संस्कृत:
सुनि सुभ अवसरु सजीव समाजू। जनक नगर बसु भइ अकाजू॥
भावार्थ:
राम-सीता विवाह की खबर से मिथिला में आनंद का उत्सव छा गया।
श्लोक 2
संस्कृत:
नगर सुहावन भइ दिन रैना। करि सिंगारु चलेउ बिधि चैना॥
भावार्थ:
पूरे नगर को विवाह के अनुरूप सुंदर ढंग से सजाया गया।
श्लोक 3
संस्कृत:
दशरथु सुनेउ बिनयु जनक के। चले बारात समेत अनेक के॥
भावार्थ:
जनक के निमंत्रण पर अयोध्या से विवाह बारात मिथिला के लिए रवाना होती है।
श्लोक 4
संस्कृत:
गए सजीव समाजु बराती। मुदित सकल नगर की प्रजा ती॥
भावार्थ:
दशरथ की अगुवाई में पहुँची बारात का जनकपुर में भव्य स्वागत होता है।
श्लोक 5
संस्कृत:
बाजहिं नगर निसान नगारे। होहिं मंगल साज सवारे॥
भावार्थ:
नगर में विवाह का उल्लास वातावरण को आनंदमय बना देता है।
श्लोक 6
संस्कृत:
द्विज बोलाए वेद पठन कारे। होहिं विधि साज बिधि अपारें॥
भावार्थ:
विवाह संस्कार हेतु वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठान की तैयारियाँ की जाती हैं।
श्लोक 7
संस्कृत:
हरषि जनक बोलेउ बचन समुझाई। राम विवाह करउ सब भलाई॥
भावार्थ:
जनक विवाह को लोकमंगल का कार्य मानकर उसे शुभारंभ करने की घोषणा करते हैं।