लोगोलोक में राम

शिव पार्वती का विवाह स्मरण

इस अध्याय में शिव और पार्वती के विवाह की मधुर स्मृति की जाती है। यह प्रसंग प्रेम, तपस्या, और परम एकता का प्रतीक है। भगवान शंकर के संयम और माता पार्वती की भक्ति के परिणामस्वरूप यह विवाह संपन्न होता है, जो समस्त संसार को आदर्श दांपत्य जीवन की प्रेरणा देता है।

श्लोक 1

संस्कृत:

बंदउँ प्रथम महीस जुग नामा। उमा सहित जे हर गुन ग्रामाँ॥

भावार्थ:

भगवान शिव और माता उमा की वंदना से मंगल आरंभ होता है।

श्लोक 2

संस्कृत:

गिरिजा पति हित कारन कैसा। पारबति तप कठिन करैसा॥

भावार्थ:

पार्वती की भक्ति और तपस्या अटल प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।

श्लोक 3

संस्कृत:

सुनि हर तप तिन्हहि बर दीन्हा। उमा सहित बिवाह कर लीन्हा॥

भावार्थ:

तपस्या और भक्ति का फल शिव-पार्वती के पवित्र विवाह के रूप में प्राप्त हुआ।

श्लोक 4

संस्कृत:

सजे बिबाहु सुन्दर साजा। देवन्ह सँग आयउ रघुराजा॥

भावार्थ:

शिव-पार्वती विवाह केवल लौकिक नहीं, बल्कि दिव्य आयोजन था।

श्लोक 5

संस्कृत:

हरषि हर हरषाइ उमा। देखि बिबाह सकल जग चमा॥

भावार्थ:

यह विवाह प्रसंग प्रेम, भक्ति और आत्मा के मिलन का प्रतीक है।