नगर स्वागत
इस अध्याय में राम और लक्ष्मण के विश्वामित्र के साथ यज्ञ रक्षण हेतु प्रस्थान के पश्चात राजा दशरथ के लौटने पर अयोध्यावासियों द्वारा किया गया स्वागत वर्णित है। यह प्रसंग राजधर्म, जनसमर्पण और जनता के राजा के प्रति प्रेम और उत्साह को दर्शाता है।
श्लोक 1
संस्कृत:
सुनि नृप आए नगर बसाई। हरष बिकल भए नर नारी॥
भावार्थ:
राजा दशरथ के लौटने की खबर से नगर में उत्सव जैसा माहौल बन गया।
श्लोक 2
संस्कृत:
सजि-सजि रथ गज तुरग सुहाए। बाजत बेद धुनि सब ठाए॥
भावार्थ:
नगर के लोग स्वागत की भव्य तैयारी कर चुके थे।
श्लोक 3
संस्कृत:
फूलन बरषत चले समाजा। नृत्य करत गावहि सुर राजा॥
भावार्थ:
स्वागत में सांस्कृतिक उल्लास का प्रदर्शन हुआ।
श्लोक 4
संस्कृत:
रानीं निकसिं सुनि पथु राजा। आयसु पाइन्ह मुदित समाजा॥
भावार्थ:
राजमहल भी इस स्वागत के रंग में रंग गया।
श्लोक 5
संस्कृत:
राजद्वार जब पहुँचे नृपाला। बाजे मंगल गान बिसाला॥
भावार्थ:
राजा के स्वागत का चरम क्षण राजद्वार पर हुआ।
श्लोक 6
संस्कृत:
प्रजा सहित रघुनायक आए। नगर साज सब हरष बढ़ाए॥
भावार्थ:
यह प्रवेश केवल एक राजा का नहीं, बल्कि जन-मन के प्रिय की घर वापसी थी।