लोगोलोक में राम

राजमहल का जीवन

इस अध्याय में अयोध्या के राजमहल का जीवन चित्रित किया गया है, जहाँ राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के बचपन की लीला, माताओं का स्नेह, और पारिवारिक आनंद दर्शाया गया है। यह प्रसंग एक आदर्श राजपरिवार की संस्कृति, अनुशासन और प्रेम की झलक देता है, जहाँ धर्म और मर्यादा जीवन के मूल आधार हैं।

श्लोक 1

संस्कृत:

रघुकुल भवन प्रेम रस छाया। राम लखन कहुं देखत माया॥

भावार्थ:

राजमहल में बालकों की उपस्थिति से सबका जीवन आनंदमय था।

श्लोक 2

संस्कृत:

जननीं गोद लखत ललन प्यारे। लोचन भरे सनेह निवारे॥

भावार्थ:

माताओं के जीवन का केंद्र उनके पुत्र थे।

श्लोक 3

संस्कृत:

राजा रानी सबहि सुखदायी। राम लखन बिनु अति अकुलाई॥

भावार्थ:

राजपरिवार का प्रेम बच्चों के बिना अधूरा लगता।

श्लोक 4

संस्कृत:

बालक चरित भातिन मन भावे। जबहिं देखहिं मुदित मुख छावे॥

भावार्थ:

घर का हर सदस्य बच्चों के साथ जुड़ा हुआ था।

श्लोक 5

संस्कृत:

दासी सेवक प्रीति बढ़ाई। निज निज कर्महि हरषी जाई॥

भावार्थ:

राजमहल में प्रेम और सेवा का सुंदर संतुलन था।

श्लोक 6

संस्कृत:

गुरु गृह गवन सुअवसर आई। नृप हर्षे कीन्ह बड़ाई॥

भावार्थ:

राजा दशरथ शिक्षा को अत्यंत महत्व देते थे।

श्लोक 7

संस्कृत:

सुनि गुरु बचन सुभट सुख माने। चारिहि भाई गए गुरुठाने॥

भावार्थ:

भाइयों ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए खुशी से प्रस्थान किया।

श्लोक 8

संस्कृत:

राजमहल भयउ हर्ष बड़ाई। सुभ दिन आयउ सब लखि जाई॥

भावार्थ:

सबका विश्वास था कि आगे का समय अत्यंत मंगलमय होगा।