लोगोलोक में राम

राक्षसों के अत्याचार का वर्णन

इस अध्याय में महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को राक्षसों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का वर्णन करते हैं। यह प्रसंग धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष, संतों की पीड़ा, और यज्ञों के विध्वंस की मार्मिक व्याख्या करता है। राम के रक्षक रूप को जगाने का यह महत्वपूर्ण क्षण है।

श्लोक 1

संस्कृत:

बोले मुनि सुनु रघुकुल नायक। होइहि अब दुष्टन को विनायक॥

भावार्थ:

विश्वामित्र राम से राक्षसों के दमन का आह्वान करते हैं।

श्लोक 2

संस्कृत:

निशिचर नाना रूप बनाए। यज्ञ विधि सब भंग कराए॥

भावार्थ:

धार्मिक कार्यों में बाधा डालना राक्षसों का प्रमुख उद्देश्य था।

श्लोक 3

संस्कृत:

ब्रम्हन मारि करत बहु लीला। धरम नष्ट भयउ सब शीला॥

भावार्थ:

धार्मिक व्यवस्था बिखर चुकी थी।

श्लोक 4

संस्कृत:

रक्त पिबहिं सुरद्विज बिलोकत। बिस्मय लाग सुरमुनि शोचत॥

भावार्थ:

अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था।

श्लोक 5

संस्कृत:

हवन कुंड सब राखि उड़ाई। मंत्र बिसारि जप नहिं जाई॥

भावार्थ:

संपूर्ण यज्ञ विधि बाधित कर दी गई थी।

श्लोक 6

संस्कृत:

भूत प्रेत संगी लिए फिरे। मुनि निकेत अति भय उपजि रहे॥

भावार्थ:

संत और तपस्वी आश्रयों में भय और अशांति का वातावरण है।

श्लोक 7

संस्कृत:

नारि सती के छिन्ने वस्त्र। पापी करत अधम अनाचर॥

भावार्थ:

राक्षसों की नीचता स्त्रियों के अपमान तक पहुँच चुकी है।

श्लोक 8

संस्कृत:

राखब कोउ नाहीं तपस्वा। रघुपति अब तोहि करि रक्षा॥

भावार्थ:

विश्वामित्र राम से अंतिम आशा के रूप में विनती करते हैं।

श्लोक 9

संस्कृत:

धीरज धरि बोले रघुनंदन। मिटिहि अधम सब भय बंधन॥

भावार्थ:

राम राक्षसों के विनाश का संकल्प लेते हैं।