राक्षसों का विनाश
इस अध्याय में श्रीराम, विश्वामित्र के साथ मिलकर यज्ञ विध्वंस करने वाले राक्षसों का संहार करते हैं। मारीच, सुबाहु और अन्य राक्षसों का अंत कर वे ऋषियों के यज्ञ की रक्षा करते हैं। यह प्रसंग श्रीराम की वीरता और धर्म की रक्षा के लिए उनकी कटिबद्धता को दर्शाता है।
श्लोक 1
संस्कृत:
तब रघुनाथ धनुष सर लेहीं। करि संधान बान संदेहीं॥
भावार्थ:
राम ने युद्ध के लिए तैयार होकर बाणों की वर्षा प्रारंभ की।
श्लोक 2
संस्कृत:
रन भूमि भयावह भयो। रुधिर धार बहत न कह्यो॥
भावार्थ:
युद्ध का दृश्य अत्यंत भीषण और रक्तरंजित हो गया।
श्लोक 3
संस्कृत:
मारीच मायावी बहुत भारी। राम बानु तासु संहारी॥
भावार्थ:
राम की शक्ति ने मायावी राक्षस को भी परास्त कर दिया।
श्लोक 4
संस्कृत:
सुबाहु अति घोर कृधाई। राम सरन्हि तिन्हहि संघाई॥
भावार्थ:
राम ने दूसरे राक्षसों के साथ सुबाहु का भी अंत कर दिया।
श्लोक 5
संस्कृत:
यज्ञ बचाय रघुपति कीन्हा। सब संतन को हरषु दीन्हा॥
भावार्थ:
राम के द्वारा यज्ञ की रक्षा से ऋषियों को आनंद मिला।
श्लोक 6
संस्कृत:
ब्रह्मबाण करि राम संहारा। राक्षस निकर भयो उजियारा॥
भावार्थ:
ब्रह्मास्त्र से संपूर्ण युद्ध भूमि राक्षसों से मुक्त हो गई।
श्लोक 7
संस्कृत:
मुनि सब मिलि बोले बानी। जय राम रघुनायक बड़ि ज्ञानी॥
भावार्थ:
राम की प्रशंसा में सभी ऋषियों ने एक स्वर में जयकार किया।
श्लोक 8
संस्कृत:
विश्वामित्र मन अति सुख पावा। प्रेम सहित रघुनाथ गहि भावा॥
भावार्थ:
राम के पराक्रम से विश्वामित्र का हर्ष और स्नेह प्रकट हुआ।
श्लोक 9
संस्कृत:
धर्म राखि रिपु मारि सुधारी। कीन्हु सुकृत सुर साज संवारी॥
भावार्थ:
राम ने धर्म स्थापना और पुण्य की पुनर्स्थापना के लिए राक्षसों का विनाश किया।