लोगोलोक में राम

ऋषियों को आश्वासन

इस अध्याय में श्रीराम, ऋषियों द्वारा व्यक्त किए गए राक्षसों के अत्याचार की पीड़ा को सुनते हैं और उन्हें सुरक्षा का वचन देते हैं। राम का यह आश्वासन केवल वाणी नहीं, बल्कि धर्म और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह प्रसंग वीरता, सेवा और संकल्प का उदात्त चित्र प्रस्तुत करता है।

श्लोक 1

संस्कृत:

सुनि मुनि वचन राम मन माहीं। उठी करुणा धर्म गहि चाही॥

भावार्थ:

राम ने पीड़ितों की रक्षा का संकल्प लिया।

श्लोक 2

संस्कृत:

बोले बचन सत्य निःभयता। मुनिनाथ सुनहु अस हमरी गति॥

भावार्थ:

राम ने अपना लक्ष्य राक्षसों से मुक्ति को घोषित किया।

श्लोक 3

संस्कृत:

जहँ जहँ भय तहाँ हम जाई। धर्म राखि संकट मिटाई॥

भावार्थ:

राम का आश्वासन उनके कर्मयोगी स्वरूप को दर्शाता है।

श्लोक 4

संस्कृत:

निशिचर निकर नास अब होई। करहु तप निश्चिंत सब कोई॥

भावार्थ:

राम ऋषियों को निर्भय होकर साधना में प्रवृत्त होने का विश्वास दिलाते हैं।

श्लोक 5

संस्कृत:

भय हरन राम कहे बचना। मुनिजन हृदय भयो पवना॥

भावार्थ:

राम की वाणी ऋषियों के लिए आशा और शक्ति बन गई।