संतों का हर्ष
इस अध्याय में श्रीराम द्वारा ताड़का और अन्य राक्षसों के वध के पश्चात संतों और ऋषियों में उत्पन्न गहन हर्ष का वर्णन है। वर्षों की तपस्या और उपेक्षा के बाद धर्म की पुनर्स्थापना से उनके हृदय में विश्वास और आनंद की लहर दौड़ जाती है।
श्लोक 1
संस्कृत:
हरषे मुनि जब सुनी बिपति नासी। राम प्रताप जासु जग जासी॥
भावार्थ:
श्रीराम के राक्षस-विनाश से संतों के हृदय में आनंद और संतोष का संचार हुआ।
श्लोक 2
संस्कृत:
सब मुनि बोले बचन सनेही। जय हो राम कृपालु सनेही॥
भावार्थ:
संतों ने श्रीराम की विजय और करुणा की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
श्लोक 3
संस्कृत:
बर्षौं बास बन बिपिन भयऊ। अब सुरक्षित तपोवन भयऊ॥
भावार्थ:
श्रीराम ने वनों को पुनः तपोभूमि बना दिया।
श्लोक 4
संस्कृत:
किए राम जब रजनीचर संहार। हर्षे संत मन हरष अपार॥
भावार्थ:
संतों ने इसे धर्म की विजय माना।
श्लोक 5
संस्कृत:
मुनि आश्रम भरि गूंजे गान। राम नाम बिनु न होई कल्याण॥
भावार्थ:
श्रीराम का यश वनों से गूंजने लगता है, और संत उनका जयगान करते हैं।
श्लोक 6
संस्कृत:
संत हृदय नित राम निवासा। भयो हर्ष सुख सदा प्रकाशा॥
भावार्थ:
राम-स्मरण से संतों के जीवन में स्थायी शांति और आनंद आ गया।