राम का जनसंपर्क
इस अध्याय में श्रीराम, गुरु विश्वामित्र के साथ यात्रा करते हुए जनसाधारण से मिलते हैं, उनका हालचाल जानते हैं और सहज, विनम्र व्यवहार से सभी के हृदय को जीतते हैं। यह प्रसंग बताता है कि एक राजा या नेता कैसा होना चाहिए – प्रजा से जुड़ा हुआ, करुणाशील और संवादशील।
श्लोक 1
संस्कृत:
जन मन मोहि राम सुखकारी। मधुर बचन बोले हितकारी॥
भावार्थ:
राम अपने संवाद से जनसाधारण का हृदय जीतते हैं।
श्लोक 2
संस्कृत:
जहँ तहँ चले साथ मुनि राजू। प्रीति बंधु सम भेटे काजू॥
भावार्थ:
राम का स्वभाव सभी को आत्मीयता का अनुभव कराता है।
श्लोक 3
संस्कृत:
ग्राम ग्राम सब दरश दिए। जन जन के मन हरष भरे॥
भावार्थ:
जनसंपर्क के माध्यम से उन्होंने लोक-मानस में स्थान बनाया।
श्लोक 4
संस्कृत:
बाल वृद्ध नर नारि सुहाए। राम रूप दरश पागल भए॥
भावार्थ:
राम के सौम्य रूप ने सभी को भावविभोर कर दिया।
श्लोक 5
संस्कृत:
रामु सप्रेम पुछे कुशलाता। जन गन कहहिं हर्षित बाता॥
भावार्थ:
राम का व्यवहार जनतंत्रात्मक और सजीव था।
श्लोक 6
संस्कृत:
जन की सेवा निज धर्म बखाना। रामु कहे हित सबका ठाना॥
भावार्थ:
यह अध्याय राम के आदर्श लोकनायक स्वरूप को दर्शाता है।