लोगोलोक में राम

राम का धनुष तोड़ना

इस अध्याय में श्रीराम गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से शिवजी के परम दिव्य धनुष को सहज भाव से उठाते हैं और देखते ही देखते उसे तोड़ डालते हैं। यह घटना पूरी सभा को चकित कर देती है और यह सिद्ध हो जाता है कि श्रीराम ही परम वीर और योग्यतम वर हैं।

श्लोक 1

संस्कृत:

सुनि मुनि बचन राम उठि ठाढ़े। बचन सीकर सकल जन बाढ़े॥

भावार्थ:

राम विश्वामित्र की आज्ञा मानकर धनुष उठाने के लिए आगे बढ़ते हैं।

श्लोक 2

संस्कृत:

उठे राम बिनय धरे उर। सबै लोक बिमोहित कर॥

भावार्थ:

श्रीराम का संयम, तेज और नम्रता सभी को सम्मोहित कर लेती है।

श्लोक 3

संस्कृत:

धनुष समीप गए रघुनंदन। चरन परसेउ पूजहिं बंधन॥

भावार्थ:

राम शिव धनुष का पहले सम्मान करते हैं, फिर उसे उठाने के लिए अग्रसर होते हैं।

श्लोक 4

संस्कृत:

रघुपति धनुष उठायउ भारी। भुजबल सहित सहज सुकुमारी॥

भावार्थ:

जिसे कोई राजा हिला भी न सका, राम ने उसे बिना प्रयास के उठा लिया।

श्लोक 5

संस्कृत:

मंजु मुसुकाइ चित चाप चढ़ावा। देखि सभा सकल सुख पावा॥

भावार्थ:

राम का आत्मविश्वास और सहजता देख सबको आश्चर्य और प्रसन्नता होती है।

श्लोक 6

संस्कृत:

बाम कर सर संधानु करहीं। चाप टारि कछु मन न डरहीं॥

भावार्थ:

राम संपूर्ण आत्मविश्वास से धनुष को चढ़ाने लगे।

श्लोक 7

संस्कृत:

भट जैसें बड़ि भीम लराई। चाप चढ़ाइ करत प्रभु जाई॥

भावार्थ:

राम का युद्धभाव और आत्मबल अत्यंत प्रेरणादायक है।

श्लोक 8

संस्कृत:

कर जोरि सब मुनि मन मानी। देखत सब रघुपति के बानी॥

भावार्थ:

सभा में सब श्रद्धा और विस्मय से भर उठते हैं।

श्लोक 9

संस्कृत:

चढ़ाइ चाप बंधेउ फरकाई। टूटि गयउ गर्जेउ ज्यों छाई॥

भावार्थ:

शिव धनुष राम के हाथों टूट गया और इसकी गूंज चारों ओर फैल गई।

श्लोक 10

संस्कृत:

धनुष भंग सुनि नगर बसाहीं। भूप मुनि सिद्ध सुर सब आहीं॥

भावार्थ:

इस अलौकिक घटना ने पूरे मिथिला को हिला दिया।

श्लोक 11

संस्कृत:

बोलें ब्रह्मा हरषि उर लाई। जय रघुबीर प्रकट प्रभु आई॥

भावार्थ:

देवताओं को राम की दिव्यता स्पष्ट रूप से दिखने लगी।

श्लोक 12

संस्कृत:

सुनि जनक मोद मंगल निधाना। उठि रनिवास गए हरषाना॥

भावार्थ:

जनक को अब विश्वास हो गया कि योग्यतम वर मिल चुका है।

श्लोक 13

संस्कृत:

मिलेउ सीय वर राम समाना। भए जनक कुल धन विधि नाना॥

भावार्थ:

राम और सीता का मिलन प्रारंभ हो गया।

श्लोक 14

संस्कृत:

भावी बिधि बस भयो मिलावा। राम जानकी हिय सुख पावा॥

भावार्थ:

ईश्वर की इच्छा से यह दैवी मिलन संपन्न हुआ।