राम का वनों में भ्रमण
इस अध्याय में श्रीराम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के साथ विभिन्न वनों में भ्रमण करते हैं। वे मार्ग में ऋषि-मुनियों से मिलते हैं, तपोभूमियों का दर्शन करते हैं, और प्रकृति के सौंदर्य एवं तपस्वियों की साधना से प्रेरित होते हैं। यह यात्रा केवल भौतिक नहीं, एक आत्मिक अनुभव है।
श्लोक 1
संस्कृत:
चले रघुनायक मुनि संगा। देखि बनन सुभग सबरंगा॥
भावार्थ:
श्रीराम का वन में प्रवेश दिव्य आनंद और प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है।
श्लोक 2
संस्कृत:
तरु लता सगुन बृंद सुहाए। भ्रमर भौंर संकुल बन छाए॥
भावार्थ:
प्राकृतिक वातावरण मंत्रमुग्ध करने वाला और पावन अनुभव देता है।
श्लोक 3
संस्कृत:
मुनि गन संग बटु द्वय भ्राता। सुनत कथा सगुन गुन गाता॥
भावार्थ:
राम-लक्ष्मण ज्ञान-विज्ञान और धर्म का सम्यक अनुभव प्राप्त करते हैं।
श्लोक 4
संस्कृत:
जहँ तहँ आश्रम रुचिर बनाए। मुनि सुसंस्कृत ध्यान लगाएं॥
भावार्थ:
श्रीराम को वनों में ऋषियों के तप, त्याग और शांति का साक्षात्कार होता है।
श्लोक 5
संस्कृत:
देखि राम मुनिन्ह के पाँवू। चरन रज ले मन अति भावू॥
भावार्थ:
श्रीराम विनम्रता और सेवा के आदर्श रूप में प्रकट होते हैं।
श्लोक 6
संस्कृत:
सिखहि नीति धरम गुर कहहीं। राम सप्रेम सब सुनि लहहीं॥
भावार्थ:
श्रीराम शिक्षा और गुरु वचनों को पूर्ण श्रद्धा से ग्रहण करते हैं।
श्लोक 7
संस्कृत:
सप्त तीर्थ मुनि करहि निवासा। राम लखन पायउ परम प्रकाशा॥
भावार्थ:
यात्रा के माध्यम से आध्यात्मिक ऊँचाइयों की झलक मिलती है।
श्लोक 8
संस्कृत:
संध्या काल मुनि कथा सुनाईं। राम मन हरष, सुधा सम पाईं॥
भावार्थ:
प्रत्येक क्षण इस यात्रा का एक गहन और रसपूर्ण शिक्षाप्रद अनुभव बनता है।