शिव धनुष की कथा
इस अध्याय में भगवान शिव के परम तेजस्वी धनुष की उत्पत्ति और उसके मिथिला पहुँचने की कथा वर्णित है। यह धनुष राजा जनक के महल में सुरक्षित रखा गया था और उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जो भी वीर इसे उठाकर तोड़ सकेगा, वही सीता का वरण करेगा।
श्लोक 1
संस्कृत:
रघुपति सुनहु पुरातन बानी। सिव धनु बिपुल तेज मय नानी॥
भावार्थ:
शिव धनुष कोई साधारण अस्त्र नहीं, बल्कि परम दिव्य और महान शक्तियों से युक्त है।
श्लोक 2
संस्कृत:
सुर मुनि सिद्ध नाग सब देखि। रहहिं न हेरत सकल बिमुखी॥
भावार्थ:
यह धनुष दिव्य प्राणी मात्र के लिए आकर्षण और विस्मय का कारण बना।
श्लोक 3
संस्कृत:
किए प्रगट त्रिपुरारि जस भारी। जासु प्रभाव मचै संसारी॥
भावार्थ:
यह वही धनुष है जिससे शिवजी ने त्रिपुरासुर का संहार कर सृष्टि की रक्षा की थी।
श्लोक 4
संस्कृत:
देउ लागि सिव धनुष बनावा। ब्रह्मा बिस्नु समेत बड़ावा॥
भावार्थ:
यह धनुष साक्षात देवताओं द्वारा निर्मित और प्रतिष्ठित है।
श्लोक 5
संस्कृत:
सो धनुष जनकहि मिलि कैसे। कहहिं सनेह सुनहु रघु केसे॥
भावार्थ:
जनक को यह धनुष कैसे मिला, इसकी कथा भी उतनी ही अद्भुत है।
श्लोक 6
संस्कृत:
धरणि सुता जब भूमि फटी आई। तव मैं यज्ञ करन मन लाई॥
भावार्थ:
सीता के जन्म के समय ही यह कथा और धनुष का आगमन जुड़ा है।
श्लोक 7
संस्कृत:
सहज सुता मम जानि सुहाई। सिव धनु पूजत रहउ बनाई॥
भावार्थ:
सीता के जीवन में यह धनुष श्रद्धा और नियम का एक अंग बन गया।
श्लोक 8
संस्कृत:
कबहुं भूप जे आवहिं भाई। रामहि देखनु चहहिं सुहाई॥
भावार्थ:
जनक ने यह सुनिश्चित किया कि केवल वही पुरुष सीता से विवाह करेगा जो इस धनुष को उठा सके।
श्लोक 9
संस्कृत:
बहु राजनिधि नृप सब आये। धनुष देखि निज बल पछताये॥
भावार्थ:
किसी में भी इतना साहस नहीं था कि वह इसे छू भी सके।
श्लोक 10
संस्कृत:
सुनि मम बचन कीन्हि प्रतिज्ञा। बिनु धनु भंग न मिलहिं रघुरंजा॥
भावार्थ:
जनक की प्रतिज्ञा ने इस यज्ञ को एक परीक्षा स्थल में बदल दिया।
श्लोक 11
संस्कृत:
सुनि प्रभु बचन जनक मन माना। सिव धनु पूजन सहित सजाना॥
भावार्थ:
अब परीक्षा की घड़ी समीप आ गई थी।
श्लोक 12
संस्कृत:
आस लिए बैठें सब लोका। रामहि देखि जुरे मन शोका॥
भावार्थ:
राम के रूप और तेज से सभी को विश्वास होने लगा कि वही इस धनुष को उठा सकते हैं।